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हमारे संविधान निर्माता, भारतीय भाषाओं को क्यों हाई कोर्ट के कामकाज की भाषा बनाना चाहते थे? इसकी पड़ताल करने के साथ यह पुस्तक वकालत में अपनी मातृभाषा/ मातृभूमि-भाषा के प्रति उपजी हीनभावना को समाप्त करने में मददगार है।
इस पुस्तक में उच्च न्यायालय के स्तर पर दाखिल होने वाले सिविल एवं आपराधिक मुकदमों के बारे में तथा इन मुकदमों की तैयारी हिन्दी भाषा में करने के बारे में बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। (अलग-अलग मुकदमों से संबंधित 19 मसौदे भी संलग्न हैं।)
राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के महत्त्व और इसके 'भारतम' स्वरूप के विकास को विमर्श का विषय बनाने वाली यह पुस्तक, भारतीय भाषाओं को उच्च न्यायालय के कामकाज की भाषा बनाने और न्याय व्यवस्था के भाषाई-भारतीयकरण की सिद्धि प्राप्त करने में मील का पत्थर है।