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सुराज का आधार आर्थिक लोकतंत्र है और आर्थिक लोकतंत्र का आधार आर्थिक समानता है। आर्थिक समानता कैसे स्थापित हो, इसका समाधान एक बड़ी चुनौती है। खासकर तब, जब कुछ सक्षम लोग लालच के अधीन होकर भ्रष्ट आचरण करने लगते हैं और येन-केन प्रकारेण संपत्ति हासिल करने को ही अपना लक्ष्य बना लेते हैं। राष्ट्रजनक महात्मा गांधी कहते हैं - इस पृथ्वी के पास सभी लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है, किन्तु एक व्यक्ति के लालच के आगे यह पृथ्वी भी छोटी हो जाएगी। इस पवित्र वैचारिक पृष्ठभूमि पर महात्मा गांधी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत देते हुए कहा है कि यदि कोई व्यक्ति संपत्ति अर्जित करता है तो वह इस संपत्ति का न्यासी मात्र होगा।
महात्मा गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत एक सैद्धांतिक आदर्श है। इसे व्यवहारिक बनाने के लिए इसके साथ राष्ट्रनिर्माता डां. बी. आर. अंबेडकर की समान भूमि वितरण पर आधारित 'भौमिक सीमा का सिद्धांत'; और संत विनोबा भावे की 'आधिक्य भूमि के दान का विचार' जोड़ा जाना आवश्यक है। इस योग के माध्यम से न केवल आर्थिक लोकतंत्र का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है, बल्कि आर्थिक अराजकता को नियंत्रित भी किया जा सकता है। इसके लिए राष्ट्रीय स्वराज परिषद् द्वारा गांधीत्व-भीमत्व-भावेत्व योजना* को आगे बढ़ाया जा रहा है।
1. भारत देश के पास कितनी भूमि है यह निश्चित है। इस भूक्षमता को ध्यान में रखकर एक राष्ट्रीय भौमिक नीति बनाया जाए। इस नीति के अन्तर्गत वन भूमि, जलमग्न भूमि, कृषि भूमि, औद्योगिक भूमि एवं सार्वजनिक उपयोग की भूमि के अलावा बचे आवासीय भूमि के संबंध में 'प्रति नागरिक आवासीय भूसंपदा सीमा' तय किया जाए।
2. गांधीत्व-भीमत्व-भावेत्व योजना के निम्न तीन आयाम हैं -
क. कोई भी नागरिक, आवासीय भूसंपदा सीमा से अधिक भूमि का व्यक्तिगत-स्वामित्व नहीं हासिल कर सकता है। इस स्वामित्व को डां. अम्बेडकर के सम्मान में 'भीम-स्वामित्व यानी भीमत्व' कहना उचित है।
ख. यदि किसी व्यक्ति में भीमत्व की सीमा से अधिक भूमि हासिल करने की क्षमता है, तो वह ऐसा कर सकता है, किन्तु इस सीमा के बाद अर्जित की गई भूसंपदा का वह न्यासी-स्वामित्व ही धारण कर सकता है। इस स्वामित्व को महात्मा गांधी के सम्मान में 'गांधी-स्वामित्व यानी गांधीत्व' कहना उचित है।
ग. एक व्यक्ति जो कुछ भी प्राप्त करता है, उसे अपनी क्षमता का प्रयोग कर इसी समाज से प्राप्त करता है। इसे मात्र स्वयं और अपनी पीढ़ी तक सीमित रखना उचित नहीं है। संत विनोबा भावे जी लोगों से कहते थे कि आपके पास यदि दो बच्चे हैं तो अपनी संपत्ति का बंटवारा करते समय आप तीन हिस्सा लगाइए और इसमें से एक हिस्सा समाज को दे दीजिए।... गांधीत्व एवं भीमत्व के अलावा शेष भूमि का राज्य के माध्यम से भूमिहीनों के मध्य वितरण अपरिहार्य है। यह भी संभव है कि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को या उसके किसी अंश को इन दोनों स्वरूपों में नहीं रखना चाहे, बल्कि इसे वह राज्य के माध्यम से दान करना चाहे। राज्य के माध्यम से एक भूमिहीन व्यक्ति को दान में मिलने वाली इस भूमि का वह सामाजिक स्वामित्व प्राप्त कर सकेगा। इसे संत विनोबा भावे के सम्मान में 'भावे-स्वामित्व यानी भावेत्व' कहना उचित है।
3. कृषि-भूमि एवं औद्योगिक-भूमि के संबंध में कोई व्यक्ति 'गांधीत्व' ही धारण कर सकता है।
4. सहकारिता आधारित कृषि कार्य को प्रोत्साहन मिले। इसके लिए 'कृषि सहकारिता निगरानी एवं नियामक समिति' स्थापित कर इसके अधीन सहकारिता आधारित कृषि कार्य कराया जाए, ताकि कृषि भूमि का अधिकतम लाभ कृषि उत्पादन के लिए किया जा सके और इसका लाभ गांधीत्वधारी और देश को मिल सके।
• अनूप बरनवाल देशबंधु कृत पुस्तक 'समान नागरिक संहिता: चुनौतियां और समाधान' से साभार