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जाति तोड़ो, समाज जोड़ो अभियान (End Caste, Equate Society Misssion)
जाति आधारित भेदभाव का सबसे अधिक खामियाजा भारतीय समाज को छुआछूत के रूप में भुगतना पड़ा है। छुआछूत के कारण एक बहुत बड़ा वर्ग समाज के मुख्यधारा से अलग हो गया। इसने न केवल भारतीय समाज को अंदर से खोखला किया, बल्कि विदेशी आक्रांताओं को इस देश पर आधिपत्य करने का मौका दिया। जाति व्यवस्था को देश की गुलामी का कारण बताते हुए महान समाज सुधारक राजाराम मोहन राय वर्ष 1828 में कहते हैं कि जातिवाद और जातीय-अभिमान ने हमें अनगिनत वर्गों और उपवर्गों में बांट दिया है, जिससे हममें देश-प्रेम की भावना समाप्त हो गई है। इसलिए आवश्यक है कि हिन्दू धर्म के स्वरूप में परिवर्तन लाए जाएं।
आजादी के बाद हम छुआछूत पर विजय पाने में काफी हद तक सफल हुए हैं। किन्तु जातीय पहचान अभी भी समाप्त नहीं हो सका है। जाति व्यवस्था से मुक्त राष्ट्र की कल्पना करते हुए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने 25 नवंबर 1949 को कहा था- भारत में जातियां हैं। यह जातियां राष्ट्र विरोधी हैं। सर्वप्रथम इसका कारण यह है कि ये सामाजिक जीवन में भेद लाती हैं। यह इस कारण भी राष्ट्र विरोधी हैं क्योंकि ये जातियों में परस्पर ईर्ष्या और द्वेष पैदा करती हैं। लेकिन यदि हम वास्तव में एक राष्ट्र होना चाहते हैं, तो हमें इन सब कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना है। क्योंकि बन्धुत्व तभी सत्य हो सकता है जब कि एक राष्ट्र हो।...'
किसी व्यक्ति की जाति एवं वर्ण के आधार पर पहचान आज भी प्रासंगिक क्यों है, यह सवाल बहुत सारे समाजशास्त्रियों को बगले झांकने के लिए मजबूर करता है। जन्म आधारित जातिय पहचान आज भी समाज में बने हुए हैं और ताज्जुब यह है कि इसे इसका विरोध करने वाले लोग भी मान्यता देते हैं। कोई डॉक्टर बन जाये, शिक्षक बन जाये, वकील बन जाये, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बन जाये, तो भी उसकी जन्म आधारित जातीय पहचान उसके साथ चिपका रहता है। इसे समाप्त करने के लिए सुधारात्मक कदम अपनाना समय की मांग है।
जन्म आधारित पहचान को समाप्त करना आज हमारे समाजशास्त्रियों के लिए चुनौती का विषय है। इस चुनौती से निपटने के लिए हम दो स्तर पर कार्य करना महत्वपूर्ण है। पहला लोगों के कर्म आधारित पहचान को अधिक-से-अधिक सामाजिक महत्व दिया जाए और दूसरा जाति/वर्ण आधारित सामाजिक संरचना को ध्वस्त किया जाए। इसके लिए राष्ट्रीय स्वराज परिषद 'जाति तोड़ो, समाज जोड़ों अभियान' चला रहा है। इस अभियान के अंतर्गत निम्न सामाजिक सुधार के लिए कार्य किया जा रहा है -
1. जातिपरक उपनाम के स्थान पर 'राष्ट्रपरक उपनाम' जैसे स्वराज, सर्वोदय, जयहिन्द, वन्देभारतम्, नवभारतम्, अखण्डभारतम्, आजाद, समताविद्, सुधारविद्, लोकनायक, देशबन्धु, लोकमान्य, सत्याग्रही, युगान्तर, देशमंगलम्, अनुशीलक, गदर, स्वदेशमित्रम्, जननायक, सम्प्रभुरक्षक, इंकलाबी, वीरांगना का प्रयोग करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाए ।
2. सभी सरकारी अभिलेखों में शुद्र, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण या ऐसे समानार्थी शब्दों के प्रयोग पर और किसी व्यक्ति के नाम के साथ लगे उपनाम का जातिगत संदर्भ निकाले जाने पर रोक हो।
3. स्कूल के रिकॉर्ड में नाबालिग बच्चों के नाम के आगे किसी तरह की जातिगत उपनाम लिखे जाने पर रोक हो। बालिग होने के उपरान्त इन बच्चों को कोई भी उपनाम, चाहे वह मां-बाप का उपनाम या फिर राष्ट्रपरक उपनाम, रखने की आजादी हो।
4. भेदमुक्त विवाह (अन्तर्जातीय विवाह) को शासन एवं सामाजिक स्तर पर प्रोत्साहन एवं संरक्षण मिले। ऐसा विवाह करने वाले दंपत्तियों को और इनसे पैदा होने वाले बच्चों को विभिन्न योजनाओं में वरीयता एवं अतिरिक्त सहायता दिया जाए। ऐसे नवदम्पत्ति द्वारा एक-दूसरे की जातिपरक उपनाम धारण करने के बजाय 'राष्ट्रपरक उपनाम' धारण करने को प्रोत्साहन मिले।
राष्ट्रीय स्वराज परिषद्