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लक्ष्य प्राप्ति, आरक्षण समाप्ति आन्दोलन (Achieve Object, Abolish Reservation Movement)

लक्ष्य प्राप्ति, आरक्षण समाप्ति आन्दोलन (Achieve Object, Abolish Reservation Movement)

पिछड़े वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से सेवा में आरक्षण का सिद्धांत लागू किया गया। आरक्षण की व्यवस्था ऐसे पिछड़े वर्ग के लिए बनाया गया, जिनका सेवा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं था। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि यह व्यवस्था कुछ ही समय के लिए होना चाहिए। डॉ. धर्म प्रकाश ने पिछड़े वर्ग के सांस्कृतिक रूप से बराबरी पर आ जाने पर आरक्षण को समाप्त कर देने की वकालत किया। 

आरक्षण का पैमाना सेवा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना या नहीं होना है। इसलिए यह एक सदैव गतिशील रहने वाली व्यवस्था है। किंतु आज जानबूझकर आरक्षण को गतिशील होने से रोक दिया गया है। जिस आरक्षण को 75 वर्ष बाद लक्ष्य प्राप्त करने व समाप्त होने की तरफ बढ़ना चाहिए था, उसे स्थिर बनाया जा रहा है। यह प्रयास दोनों तरफ के हितबद्ध लोगों द्वारा किया जा रहा है।... सवर्ण वर्ग का कुलीन उपवर्ग उच्चतर संस्थाओं में अपना वर्चस्व बनाये हुए है। वह मेरिट की दुहाई देकर आरक्षण को अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त होने देना चाहता है। इसका खामियाजा आम सवर्णों को दो स्तर पर भुगतना होता है। पहला यह कि वह इन उच्चतर संस्थाओं में कहीं आसपास फटकने नहीं पाता है। दूसरा यह कि वह बदनाम रहता है कि इन उच्चतर संस्थाओं में सवर्ण वर्ग का वर्चस्व बना हुआ है। इस कारण आरक्षण समाप्त करने का इनका दावा कमजोर रहता है।... पिछड़े वर्ग में भी आरक्षण का लाभ लेकर एक समृद्ध उपवर्ग पैदा हो गया है। यह नवनिर्मित समृद्ध उपवर्ग भी आरक्षण के वर्तमान स्वरूप को स्थिर बनाए रखना चाहता है, ताकि उनके बच्चे आरक्षण का लाभ ले लें और उनके वर्ग के वंचित बच्चे वंचित हो जाए। आम पिछड़े वर्ग के बच्चे इन समृद्ध उपवर्ग के बच्चों के आगे असहाय रहते हैं।... इन दोनों कुलीन एवं समृद्ध उपवर्गों में एक अपवित्र गठबन्धन बन गया है। ये दोनों एक-दूसरे के लिए ढाल का काम करते हैं। ये कदापि नहीं चाहते हैं कि आरक्षण अपने लक्ष्य को जल्द-से-जल्द प्राप्त करे और इसे समाप्त किया जाय। इसके कारण सबसे अधिक नुकसान आम युवाओं को भुगतना होता है, चाहे वह सवर्ण वर्ग के हों या पिछड़ा या दलित वर्ग के।

कुलीन एवं समृद्ध उपवर्गों के इस अपवित्र गठबन्धन को तोड़ने का दायित्व आम युवाओं का है। सवर्ण वर्ग के आम युवाओं का दायित्व है कि वह इसकी निगरानी करे कि आरक्षण की व्यवस्था अपना लक्ष्य जल्द-से-जल्द प्राप्त करे, ताकि इसे समाप्त किया जा सके। इसी तरह पिछड़े एवं दलित वर्ग के आम युवाओं का भी यह दायित्व है कि उसके आरक्षण के हक को नवनिर्मित समृद्ध उपवर्ग हड़पने न पाये। इसको लेकर राष्ट्रीय स्वराज परिषद द्वारा 'लक्ष्य प्राप्ति, आरक्षण समाप्ति आन्दोलन' चलाया जा रहा है। 

1. त्रिक नीति'* (ट्रिपल पालिसी) लागू करके आरक्षण का लक्ष्य जल्द-से-जल्द हासिल करना और समाप्त करना है।

क. सर्वक्षेत्र आरक्षण स्वीकृति नीति - इस नीति के अंतर्गत देश के उच्चतर संस्थाओं में आरक्षण की व्यवस्था अखिल भारतीय स्तर पर इकाई बनाकर एक निश्चित अवधि के लिए लागू किया जाए। 

ख. एक बार आरक्षण, फिर नहीं आरक्षण नीति- इस नीति के अंतर्गत जिस भी व्यक्ति को एक बार आरक्षण का लाभ प्राप्त हो जाय, उसे या उसके परिवार के सदस्य को आरक्षण का लाभ दोबारा नहीं मिले, ताकि उसी वर्ग के दूसरे लोगों को आरक्षण का लाभ मिल सके।

ग. न्यूनतम हैसियत निस्यन्दन की नीति - इस नीति के अंतर्गत एक निश्चित न्यूनतम आय अर्जित करने वाले या एक निश्चित स्तर की प्रतिष्ठा का पद धारण करने वाले या न्यूनतम क्षेत्रफल से अधिक भूमि का स्वामित्व अर्जित करने वाले व्यक्ति को छांटकर आरक्षण नीति से बाहर कर दिया जाए।

2. शिक्षा के राष्ट्रीयकरण के अंतर्गत स्कूली शिक्षा हेतु निजी शैक्षणिक व्यवस्था समाप्त करके सरकारी स्कूल और निजी स्कूल के कारण होने वाला भेदभाव समाप्त हो जाएगा और ऐसे भेदभाव के कारण होने वाली आरक्षण की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगा।

3. 'गांधीत्व-भीमत्व-भावेत्व सिद्धांत'** लागू करके भौमिक असमानता के कारण होने वाला भेदभाव समाप्त हो जाएगा और ऐसे भेदभाव के कारण होने वाली आरक्षण की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगा।

4. कृषि का राष्ट्रीयकरण करके कृषक-भूमि और कृषक-अधिकार को लेकर होने वाला भेदभाव समाप्त हो जाएगा और ऐसे भेदभाव के कारण होने वाली आरक्षण की आवश्यकता भी समाप्त हो जाएगा।

* अनूप बरनवाल 'देशबंधु' कृत पुस्तक 'भारतीय सिविल संहिता के सिद्धांत' से साभार
** अनूप बरनवाल 'देशबंधु' कृत पुस्तक 'समान नागरिक संहिता: चुनौतियां और समाधान' से साभार