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RSP Vision

स्वराज से सुराज की ओर

1. शिक्षा का राष्ट्रीयकरण के लिए प्रतिबद्ध
     हमारी शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इसे सरकारी और निजी स्कूलों में बांट दिया गया है। इस कृत्रिम तरह के अनैतिक बंटवारे के कारण एक नए प्रकार का वर्गभेद पैदा हो गया है और दुर्भाग्य से इस वर्गभेद को लगातार मजबूत किया जाता रहा है।
      निजी शिक्षण संस्थाएं आज शैक्षणिक सामंतवाद का प्रतीक बन गयी हैं और समानता का दम्भ भरने वाले हमारे लोकतन्त्र को चुनौती दे रहे हैं।  इस नव सामंतवादी वर्गभेद को 'शिक्षा का अधिकार' के लालीपाप से ढकने का प्रयास किया गया है। किंतु यह मात्र छलावा जैसा ही है
     राष्ट्रीय स्वराज परिषद शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव करने की वकालत करता है। यह आमूलचूल बदलाव है - 'सरकारी व निजी स्कूलों में शिक्षा के बंटवारे को समाप्त कर शिक्षा का राष्ट्रीयकरण'।

2. कृषि का राष्ट्रीयकरण की वकालत
      आज देश में सबसे अधिक विकट एवं दुखदाई स्थिति में जीवन-बसर करने वाले छोटे एवं मध्यम वर्ग के किसान हैं। अन्नदाता कहा जाने वाला किसान आज जहां कर्ज के कारण आत्महत्या करने के लिए मजबूर हैं, तो उसके आश्रित बच्चे अन्न के बिना कुपोषण एवं भूखमरी का शिकार होते रहने के लिए अभिशापित हैं।
     कृषि पर ही सम्पूर्ण राष्ट्र की गति एवं प्रगति निर्भर रहता है। कृषियोग्य भू-सम्पत्ति का अधिक से अधिक सदुपयोग व कृषि-उत्पादन राष्ट्रहित से जुड़ा विषय है। इसे हम किसानों की निजी क्षमता, कौशल या स्वेच्छाचार के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं। हम यह नहीं कह सकते हैं कि किसान अपनी इच्छानुसार व क्षमतानुसार या तो भूमि को जोते-बोये या परती छोड़ दे। खेत को अच्छे से जोतने-बोने या किसी कारण इसे परती छोड़ देने का सीधा प्रभाव देश की प्रगति पर पड़ता है।
     समय-समय पर कर्जमाफी देकर हमारे नीति-निर्माता चुनावी लालीपाप देते रहते हैं। किंतु इसका स्थायी समाधान कर्जमाफी नहीं, बल्कि 'कृषि का राष्ट्रीयकरण' है।

3. धर्मनिरपेक्ष एवं लिंगनिरपेक्ष "समान नागरिक संहिता" बनाकर लागू करने के लिए कटिबद्ध
     संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि देश के लिए समान नागरिक संहिता बनाकर लागू किया जाएगा। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि अलग-अलग धर्म के लिए अलग-अलग कानूनों को समाप्त किया जाए और सभी भारतीयों के लिए एक सर्वमान्य धर्मनिरपेक्ष एवं लिंगनिरपेक्ष सिविल संहिता बनकर लागू हो।
     देश की धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को मजबूत बनाने और इसकी एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए समान नागरिक संहिता का निर्माण बहुत आवश्यक है। किन्तु दुर्भाग्य से समान नागरिक संहिता के विषय को हमेशा धर्म के चश्मे से देखा जाता रहा है। पिछले 70 वर्षों के दौरान इस दिशा में ईमानदारी से कोई कदम नहीं उठाया गया।

4. महिलाओं को पैतृक एवं दाम्पत्य सम्पत्ति में समान अधिकार देने के लिए संकल्पित
      भारत में महिलाओं की सम्पत्ति के वास्तविक अधिकार को भरण-पोषण से आच्छादित कर दिया गया है। पूर्व-पति से भरण-पोषण मिलना भी हमेशा कानूनी जटिलता एवं मुकदमेबाजी का विषय रहता है। यदि महिलाओं को उनकी सम्पत्ति में दोनों वास्तविक अधिकार - (1) पुत्री के रूप में पैतृक सम्पत्ति में बराबर का अधिकार और (2) पत्नी के रूप में दाम्पत्य के दौरान अर्जित सम्पत्ति में बराबरी का अधिकार, मिल जाए तो कुछ अपवाद को छोड़कर भरण-पोषण के अधिकार का कोई खास महत्व नहीं रह जाएगा।
     70 वर्ष बाद आज भी भारत में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग सिविल कानून लागू हैं। इन कानूनों में महिलाओं की सम्पत्ति में अधिकार को अलग-अलग तरीके से स्वीकार किया गया है। मुस्लिम कानून में एक महिला को पुत्री के रूप में मिलने वाला अधिकार अलग है तो हिन्दू कानून या ईसाई कानून में अलग। दाम्पत्य के दौरान अर्जित संपत्ति में पत्नी के बराबर के हिस्से को तो किसी कानून ने नहीं स्वीकार किया है। 
     सभ्यता के पथ पर आगे बढ़ रहे भारत जैसे देश के कानून द्वारा महिलाओं के इस अधिकार से अनजान बने रहना दुर्भाग्यपूर्ण है। महिलाओं की सम्पत्ति में समान अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय स्वराज परिषद द्वारा "महिलाओं की सम्पत्ति में समान अधिकार आन्दोलन" चलाया जा रहा है।

5. जातीय व्यवस्था को समाप्त करने का पक्षधर

जाति आधारित भेदभाव का सबसे गलत परिणाम भारतीय समाज को छुआछूत के रूप में भुगतना पड़ा है। छुआछूत के कारण भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग मुख्यधारा से अलग हो गया। इसने न केवल समाज को अंदर से खोखला किया, बल्कि विदेशी आक्रांताओं को इस देश पर आधिपत्य करने का मौका दिया।
    जाति-व्यवस्था को देश की गुलामी का कारण बताते हुए महान् समाज सुधारक राजा राममोहन राय वर्ष 1928 में कहते हैं कि जातिभेद और जातीय अभिमान ने हमें अनगिनत वर्गों और उपवर्गों में बांट दिया है, जिससे हममें देश-प्रेम की भावना समाप्त हो गई है। सैकड़ों तरह के धार्मिक रीति रिवाज, धार्मिक समारोह और शुद्धिकरण ने हमें इस कदर बांध रखा है कि हम कोई जोखिम का काम हाथ में लेने लायक रह ही नहीं गये हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हिंदू धर्म के स्वरूप में परिवर्तन लाये जायें।
      जाति व्यवस्था से मुक्त राष्ट्र की कल्पना करते हुए डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने 25 नवंबर 1949 को कहा है कि 'भारत में जातियां हैं। ये जातियां राष्ट्र विरोधी हैं। सर्वप्रथम इसका कारण यह है कि ये सामाजिक जीवन में भेद लाती हैं। ये इस कारण भी राष्ट्र विरोधी हैं क्योंकि ये जातियों में परस्पर ईर्ष्या और द्वेष पैदा करती हैं। लेकिन यदि हम वास्तव में एक राष्ट्र होना चाहते हैं तो हमें इन सब कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना है। क्योंकि बन्धुत्व तभी सत्य हो सकता है जब कि एक राष्ट्र हो।'
       राष्ट्रीय स्वराज परिषद एक जातिमुक्त-समाज की वकालत करता है और वह जातिभेद-मुक्त-विवाह को प्रोत्साहित करने तथा जातिपरक उपनाम के स्थान पर ऐसे राष्ट्रपरक उपनाम धारण करने की बात करता है जो हमें आजादी आंदोलन के आदर्शों एवं मूल्यों के साथ जोड़ सके।

6. भौमिक एवं आर्थिक समानता के लिए 'गांधीत्व-भीमत्व-भावेत्व नीति' का समर्थन
     आज देश में मात्र 1% भारतीयों के पास देश की 58% संपत्ति है। यानी 99% लोगों के पास देश की मात्र 42% संपत्ति रहती है। हाल ही में 21 जनवरी 2019 को जारी किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के शीर्ष 9 अमीरों की संपत्ति देश की 50% गरीब जनसंख्या की कुल संपत्ति के बराबर है।
    1950 में संविधान लागू कर समानता का लक्ष्य हासिल करने के संकल्प को लेकर आगे बढ़ने वाले भारत देश के लिए 68 वर्ष बाद यह स्थिति चिंतन एवं चिंता का विषय है। यह मात्र आर्थिक असमानता की बात नहीं रह जाती है। आर्थिक असमानता के बहुत आगे यह आर्थिक अराजकता की स्थिति है।
     आर्थिक अराजकता की इस स्थिति को समाप्त करने के लिए 'राष्ट्रीय स्वराज परिषद (रा.स्व.प.) गांधीत्व-भीमत्व-भावेत्व नीति को लागू करने की वकालत करता है।

7. आरक्षण के लक्ष्य को प्राप्तकर समय सीमा के अंदर इसे समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध
     आज आरक्षण को जानबूझकर गतिशील होने से रोक दिया गया है। जिस आरक्षण को 70 वर्ष बाद आज लक्ष्य प्राप्त करने व समाप्त होने की तरफ बढ़ना चाहिए था, उसे स्थिर एवं अखण्ड बनाया जा रहा है। ऐसा प्रयास आरक्षित और अनारक्षित दोनों तरफ के हितबद्ध लोगों द्वारा किया जा रहा है।
      इन दोनों तरफ के कुलीन एवं समृद्ध उपवर्गों में एक अपवित्र गठबन्धन बन गया है। ये दोनों एक-दूसरे के लिए ढाल का काम करते हैं। ये कदापि नहीं चाहते हैं कि आरक्षण अपने लक्ष्य को जल्द-से-जल्द प्राप्त करे और इसे समाप्त किया जाय। इसके कारण सबसे अधिक नुकसान आम युवाओं को भुगतना होता है, चाहे वह सवर्ण वर्ग के हों या पिछड़ा या दलित वर्ग के।
      कुलीन एवं समृद्ध उपवर्गों के इस अपवित्र गठबन्धन को तोड़ने का दायित्व आम युवाओं का है। सवर्ण वर्ग के आम युवाओं का दायित्व है कि वह इसकी निगरानी करे कि उसके हक को मारकर आरक्षण की जो व्यवस्था लागू की गई है, वह अपने लक्ष्य को जल्द-से-जल्द प्राप्त करे, ताकि इसे समाप्त किया जा सके। इसी तरह पिछड़े एवं दलित वर्ग के आम युवाओं का भी यह देखने का दायित्व है कि उसके आरक्षण के हक को नवनिर्मित समृद्ध उपवर्ग हड़पने न पाये।
     किन्तु दुर्भाग्य से आज आरक्षण व्यवस्था जातीय स्थिरता एवं जातीय जटिलता का कारण बनता जा रहा है। यह ऐसा दवा बन गया है जिसका दुष्प्रभाव बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक है। आरक्षण रूपी दवा का दुष्प्रभाव समाज रूपी शरीर के लिए नुकसानदायक न होने पाए, इसके लिए राष्ट्रीय स्वराज परिषद द्वारा 'लक्ष्य प्राप्ति, आरक्षण समाप्ति आन्दोलन' चलाया जा रहा है।

8. हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता देने और द्वि-भारतीय भाषा नीति को लागू करने की वकालत।
     यदि आज इस देश में आर्थिक अराजकता की स्थिति इस स्तर पर पहुंच गया है कि मात्र 1% भारतीयों के पास देश की 58% संपत्ति है और आर्थिक असमानता की खाई लगातार चौड़ा होता जा रहा है, तो इसका एक महत्वपूर्ण कारण आम लोगों के मातृभाषा की उपेक्षा और सरकारी एवं उच्चतर स्तर पर अंग्रेजी का अनावश्यक महिमामण्डन किया जाना है।
     अंग्रेजी न जानना अयोग्यता हो गया है और मात्र इसी कारण से कई मेधावी युवा प्रतियोगिता से बाहर और विकास से वंचित रह जाते हैं। 70 वर्ष बाद भी अंग्रेजी का वर्चस्व बने रहना वर्गभेद का भी कारण है। इसलिए न केवल देश की एकता और अखण्डता की दृष्टि से, बल्कि वास्तविक स्वराज लाने और अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने की दृष्टि से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की आवश्यकता है।
     राष्ट्रीय स्वराज परिषद संविधान में संशोधन करके हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में घोषित करने और प्रत्येक हिन्दी राज्य/ राज्य क्षेत्र में किसी-न-किसी एक गैर हिन्दी भारतीय भाषा को द्वितीय राजभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए 'सर्वोदय भारतीय भाषा मुहिम' चला रहा है।

9. 'कश्मीर का पूर्ण भारतीयकरण' नीति लागू करके जम्मू-कश्मीर राज्य का स्थाई समाधान निकालने और अनुच्छेद 370 एवं 1954 के संविधान आदेश को समाप्त करने के लिए संकल्पित;

10. राजनीतिक एवं संस्थागत सुधार के लिए संकल्पबद्ध
(क). राज्यों में विधान परिषद को समाप्त करना
(ख). लोकसभा-चुनाव में केवल राष्ट्रीय पार्टियों को भाग लेने की छूट देने का पक्षधर, ताकि राजनीतिक स्थिरता बनी रहे और राजनीतिक सौदेबाजी की गुंजाइश समाप्त हो;
(ग). नगर और ग्राम आधारित अलग-अलग व्यवस्था के स्थान पर 'नग्राम/नगरम' की एकल एवं समग्र अवधारणा पर आधारित व्यवस्था को लागू करना;
(च). राजनीतिक पार्टियों में वंशवाद को समाप्त करने के लिए 'धारण की सीमा का सिद्धांत' और 'आदर्श नियमावली नीति' लागू करना;
(ड). राजनीतिक पार्टियों को राज्य की परिभाषा में लाना;
(च). चुनाव आयोग को निष्पक्ष एवं स्वतंत्र बनाये रखने के लिए आयोग के सदस्यों की नियुक्ति को निष्पक्ष व स्वतंत्र करने की वकालत और इसके लिए 'संविधान स्तरीय चयन समिति' का गठन करना;
(छ). 'संविधान स्तरीय चयन समिति' के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था बनाना;
(ज). 'संविधान स्तरीय चयन समिति' के माध्यम से राज्यपालों की नियुक्ति की व्यवस्था बनाना;
(झ) सीबीआई के स्थान पर राष्ट्रीय स्वरूप वाले एन.बी.आई. का गठन करना, जिसकी जवाबदेही लोकपाल जैसे स्वतंत्र इकाई के प्रति हो;
(ञ). पुरूष प्रधान शब्द 'राष्ट्रपति' के स्थान पर लिंग निरपेक्ष शब्द 'राष्ट्रपाल' का प्रयोग करना;
(ट). हिंदू मठ-मंदिरों सहित सभी धार्मिक संस्थाओं को यथोचित निर्बन्धन के साथ सार्वजनिक घोषित करना।

11. राष्ट्रीयता एवं भारतीय गौरव के अनुरूप राष्ट्रीय प्रतीकों की स्थापना
(क). प्रत्येक नागरिक के लिए 'भारतीय नागरिकता कार्ड' जारी करना;
(ख). राष्ट्रीय सिविल हैसियत ई-रजिस्टर की स्थापना करना;
(ग). संविधानवादी राष्ट्रगान को मान्यता देना;
(घ). प्रत्येक वर्ष एक 'राष्ट्रीय पर्व' और प्रत्येक महीने एक 'राष्ट्रीय दिवस' को मान्यता देना;
(ड). आजादी आंदोलन के नायकों के लिए 'भारत शिरोमणि' की स्थापना;
(च). जनसंख्या नियंत्रण के सन्दर्भ में 'राष्ट्रीय समैक्य जनसंख्या नीति' लागू करना।