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सर्वोदय भारतीय भाषा मुहिम (Sarvodaya Bharatiya Bhasha Muhim)
किसी देश के निर्माण में उसकी भाषा का बहुत योगदान होता है। यह न केवल देश की सांस्कृतिक एकता और भौगोलिक अखण्डता की दृष्टि से, बल्कि अन्तिम व्यक्ति को विकास की धारा से जोड़ने की दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। इसके बावजूद कि भारत देश, भाषा के मामले में विश्व का सबसे समृद्धशाली देश रहा है, ब्रिटिश हुकूमत के दौरान अंग्रेजी को सरकारी कार्यालयों, न्यायालयों, शिक्षण संस्थाओं की आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित किया गया। इसके कारण एक तरफ जहां, कुछ मुट्ठी भर लोग पूरी व्यवस्था पर वर्चस्व बना लिए, वहीं बहुसंख्य भारतीय समाज अपनी अंग्रेजी अनभिज्ञता के कारण इस व्यवस्था से दूर और अपने नैसर्गिक विकास से वंचित हो गया।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत करते हुए राष्ट्रजनक महात्मा गांधी कहते हैं कि 'यदि स्वराज अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों का, उन्हीं के लिए होने वाला हो, तो निसंदेह अंग्रेजी ही राष्ट्रभाषा होगा। लेकिन यदि स्वराज करोड़ों भूखे, निरक्षर, दलित और अन्त्यजों के लिए होने वाला हो, तो हिन्दी ही एकमात्र भाषा है, जो राष्ट्रभाषा हो सकती है।' हिंदी भारत में न केवल अधिसंख्य लोगों द्वारा बोला जाता है, बल्कि यह सीखने में सुगम है। इस भाषा में भारत का आपसी धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवहार होना संभव है। अन्य भारतीय भाषाओं का उल्लेख करते हुए महात्मा गांधी आगे कहते हैं कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने का मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे प्रांतीय भाषाओं को मिटाना चाहते हैं। हमारा मतलब तो सिर्फ यह है कि प्रांतों के पारस्परिक संबंध के लिए हिन्दी सीखें।
संविधान सभा बहस के दौरान 5 नवंबर 1948 को सेठ गोविंददास ने पहली बार हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने की मांग किया। भाषा पर हुए बहस के दौरान 13 सितंबर 1949 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संविधान सभा में कहा कि 'जब हम हिन्दी को स्वीकार कर रहे हैं, तो हिन्दी भाषी प्रांत अपने ऊपर बड़ी जिम्मेदारी ले रहे हैं। उम्मीद है कि वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उस प्रस्ताव को आगे बढ़ाएंगे, जिसमें कहा गया है कि सभी हिन्दी भाषी प्रांत एक या एक से ज्यादा दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन की बाध्यकारी व्यवस्था लागू करेंगे।
आजादी के 75 वर्ष बाद भी, न तो हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाया जा सका और न ही इसे, यहां तक कि हिंदी भाषी राज्यों की हाईकोर्ट, शैक्षणिक संस्थानों में पूर्णता के साथ स्थापित कर सकें। राष्ट्रीय स्वराज परिषद इसके लिए 'सर्वोदय भारतीय भाषा मुहिम' चला रहा है। इस मुहिम के माध्यम से निम्न लक्ष्य हासिल करने को लेकर संस्था संकल्पित है -
1. भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाए और 5 नवंबर को राष्ट्रभाषा दिवस के रूप में मनाया जाए।
2. प्रत्येक हिन्दी राज्य/ राज्य क्षेत्र में किसी न किसी एक गैर-हिन्दी भारतीय भाषा को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दिया जाए। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 345 में आवश्यक संशोधन किया जाए।
इस दिशा में 1. राजस्थान में उड़िया भाषा; 2. उत्तर प्रदेश (पूर्वी क्षेत्र) में तमिल भाषा; 3. उत्तर प्रदेश (मध्य क्षेत्र) में तेलुगू भाषा; 4. उत्तर प्रदेश (पश्चिमी क्षेत्र) में मराठी भाषा; 5. मध्य प्रदेश (पूर्वी क्षेत्र) में कश्मीरी भाषा; 6. मध्य प्रदेश (पश्चिमी क्षेत्र) में पंजाबी भाषा; 7. हरियाणा में असमिया भाषा; 8. छत्तीसगढ़ में मलयालम भाषा; 9. बिहार में कन्नड़ भाषा; 10. झारखंड में गुजराती भाषा; 11. हिमाचल प्रदेश में मणिपुर भाषा; 12. उत्तराखंड में कोंकणी भाषा; 13. दिल्ली में बंगला भाषा; और 14. सभी गैर हिन्दी राज्य में हिन्दी भाषा को अनिवार्य भाषा के रूप में स्कूली शिक्षा में शामिल किया जाए।
3. सभी हाईकोर्ट एवं जिला न्यायालयों और सरकारी कार्यालयों में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाए।
4. शैक्षणिक संस्थानों में अंग्रेजी को माध्यम के रूप में प्रयोग करने पर रोक हो। फ़्रेंच, रसिया, जर्मन, जापानी की तरह अंग्रेजी को केवल एक भाषा के रूप में सीखने और अध्ययन करने की छूट हो।
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