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"मिशन् आर्टिकिल 44 : एक राष्ट्र एक सिविल कानून" के सेमिनार को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुये।
हमारी भारतीय संस्कृति समग्रता पर आधारित है। यह वस्तुओं को खण्ड-खण्ड के रूप में नही देखता। नारी के लिए अलग कानून, पुरूष के लिए अलग या धर्म-धर्म के आधार पर अलग- अलग कानून स्वीकरणीय नही है।
कानून का निर्माण हो या कानून का प्रवर्तन या कानून की व्याख्या, हर क्षेत्र में समग्र दृष्टि विकसीत करना होगा और यही हमे देश के लिए एक सिविल कानून - भारतीय सिविल संहिता बनाने के लिए संकल्पित करता है।
ऐसे भीष्म कार्य की शुरूआत कुछ ही लोगों द्वारा की जाती है। 6-7 सौ वर्ष यह देश गुलाम रहा है। आजादी आन्दोलन के बीजारोपण कुछ लोगों द्वारा की गयी थी किन्तु बाद में जनमानस साथ आया और यह देश आजाद हुआ। देश के लिए एक सिविल कानून के निर्माण के लिए 'मिशन आर्टिकिल 44' ने बीजारोपण किया है। हम आशावादी है और इसलिए कह सकते हैं कि हम सभी अपने-अपने मतभेदों को समाप्त कर देश के लिए एक सिविल कानून का निर्माण जल्द ही करेंगे।
- प्रोफेसर जी.सी. त्रिपाठी, चेयरमैन बोर्ड आफ गवर्नर्स, IIT, कानपुर
'मिशन् आर्टिकिल 44: एक राष्ट्र, एक सिविल कानून' के बने तले 24 मई को "लोक सर्वोदय फाउण्डेशन" द्वारा आयोजित सेमिनार को सम्बोधित करते हुए।