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शिनजियांग में जब चीन ने कई मस्जिदों को ट्वायलट बना दिया; मुस्लिम नाम, मुस्लिम दाढ़ी, मुस्लिम टोपी पर रोक लगा दिया, तो फारूक अब्दुल्ला जैसे लोग उफ तक नहीं कर पाये। और अब जब 370 का प्रभाव समाप्त होने के साथ जम्मू-कश्मीर शेष भारत के बराबरी पर आ गया; वहां के बाल्मिकी लोगों को, वहां की महिलाओं को समान अधिकार मिल गया; शेष भारत के सभी लोग, यहां तक कि मुसलमान भी, वहां समान अधिकार के साथ आ-जा सकते हैं; वहां कई तरह से प्रगति के रास्ते खुल गये हैं, तो फारूक अब्दुल्ला जैसे नाग चीन को अपना सपेरा मानकर फनफनाने लगे हैं।
गलती तो यह है कि फारूक अब्दुल्ला जैसे सपोलों को दूध पिलाया गया और दुर्भाग्य यह है कि इनको दूध पिलाने वाले इसी भारत में है। फारूख के चीन-नागनृत्य पर आज दूध पिलाने वाले यही लोग सबसे ज्यादा खुश हैं।
किन्तु जो भी लोग चीन की धुन पर नाच रहे हैं या नाचने के लिए तैयार हैं, उन्हें शिनजियांग जाकर या तिब्बत जाकर वहां की वस्तुस्थिति के बारे में जरूर जानना-समझना चाहिए। वहां एक राष्ट्र की संकल्पना को किस तरह और कितनी कड़ाई से लागू कराया जाता है, इसे इन लोगों को अवश्य देखना चाहिए।
चीन में पूजा-इबादत पूरी तरह घर के अन्दर का विषय है। यदि आप बाहर निकलते हैं तो आपको चीन की राष्ट्रवादी संस्कृति के अनुरूप न केवल दिखना होगा, बल्कि दिखाना भी होगा। आप अपने धार्मिक अधिकारों की आड़ में ऐसा कुछ नहीं कर सकते, जो वहां की राष्ट्रीयता पर खरोंच तक लगा सके।
फारूक अब्दुल्ला ने अल्ला का नाम लेकर भावनात्मक खेल खेलने का प्रयास किया है ताकि शेष भारत का मुसलमान उसके साथ खड़े हो जाए। किन्तु यह उसकी गलतफहमी है।
शेष भारत का मुसलमान समझता है कि 370 के बने रहने के दौरान उसके साथ किस तरह वहां दोहरी नीति अपनाई जाती थी। शेष भारत का मुसलमान वहां आतंकी गतिविधियों में शामिल हो सकता था, किन्तु अजीम प्रेमजी जैसा राष्ट्रवादी मुस्लिम उद्योगपति वहां जाकर उद्योग नहीं लगा सकता था। जबकि इसके उलट पाकिस्तान के मुसलमानों के साथ ऐसा नहीं था।
फारूख अब्दुल्ला की नजर में 370 का प्रभाव समाप्त करने वाले लोग शैतान हैं। सही भी है। फारूक अब्दुल्ला जैसे नागों के फन को कुचलने के लिए इंसानियत की नहीं बल्कि शैतानी हरकत की ही आवश्यकता है। हम तो कहेंगे कि ऐसे नागों के फन को पूरी तरह कुचलने के लिए चीन की तरह पूर्ण शैतान हो जाना चाहिए, ताकि भारत के सभी लोग खुश रहे एवं भारतीयता आबाद रहे।