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सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता वाले मूल अधिकार समिति ने समान नागरिक संहिता को देश की एकता के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानते हुए इसे बनाये जाने की संस्तुति किया।
पटेल समिति की यह संस्तुति-रिपोर्ट आज़ादी मिलने के मात्र 15 दिन बाद यानी 30 अगस्त 1947 को प्रस्तुत किया गया, जिसे संविधान सभा द्वारा व्यापक चर्चा के बाद 23 नवम्बर 1948 को स्वीकार कर लिया गया।
सरदार पटेल सहित सभी संविधान निर्माताओं की इच्छा थी कि जिस धर्म-आधारित अलगाववादी सोच के कारण इस देश को विभाजन का दंश झेलना पड़ा, उस सोच को समान नागरिक संहिता बनाकर ही समाप्त किया जा सकता है।
किन्तु दुर्भाग्य से पिछले 70 वर्षों के दौरान समान नागरिक संहिता बनाए जाने के सवाल को हाशिए पर रखा गया। और इसका परिणाम यह है कि आज इस देश में पुनः धर्म-आधारित अलगाववादी शक्तियां प्रभावी होती जा रही हैं।
समान नागरिक संहिता बनाकर ही धर्म-आधारित पृथकतावादी सोच को खत्म किया जा सकता है और बिना धर्म-आधारित पृथकतावादी सोच को खत्म किए देश की एकता एवं अखंडता की बात सोचना बेमानी सा है।
आज सरदार पटेल की 145वीं जयंती है। समान नागरिक संहिता बनाकर लागू करने की ईमानदार पहल करना ही सरदार पटेल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।